Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


पवित्र ईर्ष्या

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इस खिलवाड़ को हुए प्रायः आठ साल बीत गए। विमला अब सत्रह साल की युवती थी। विमला और अखिलेश दोनों सगे भाई-बहिन से किसी बात में कम न थे। अब भी हर साल विमला बड़ी धूमधाम से अखिलेश को राखी बाँधा करती थी। चुन्नी सगी बहिन होकर भी अखिलेश के हृदय में वह स्थान न बना सकी थी जो विमला ने अपने सरल और नम्र स्वभाव के कारण बना लिया था। विमला सरीखी बहिन पर अखिलेश को उसी प्रकार गर्व था, जिस प्रकार विमला को अखिलेश के समान सुशील, तेजस्वी और मनस्वी भाई के पाने पर था।

बी०ए० की परीक्षा में यूनिवर्सिटी भर में फर्स्ट आ जाने के कारण अखिलेश को विदेश जाकर विशेष अध्ययन के लिए सरकारी छात्रवृत्ति मिली, और उसे दो साल के लिए विदेश जाना पड़ा। विदेश जाने के डेढ़ साल बाद ही अखिलेश को लाल लिफाफे में विमला के विवाह का निमंत्रण मिला। विमला के विवाह के समाचार से वह प्रसन्‍न तो हुआ, परंतु वह विवाह में सम्मिलित न हो सकेगा, इससे उसे कुछ दुःख भी हुआ।

विमला अपने माता-पिता की अंतिम संतान थी। उससे बड़े उसके चार भाई और दो बहिनें दो-दो, तीन-तीन साल के होकर नहीं रही धीं। न जाने कितने टोटके, पूजा-पाठ और जप-तप के बाद वह इस लड़की को किसी प्रकार जिला सके थे। नई सभ्यता की पक्षपातिनी होने पर भी संतान के लिए विमला की माँ ने, जिसने जो कुछ बतलाया वही किया। विमला के गले में किसी महात्मा की बताई हुई एक तावीज अब तक पड़ी थी, तात्पर्य यह कि वह माता-पिता दोनों की ही बहुत दुलारी थी। पंद्रहवें वर्ष में पैर रखते ही माँ को उसके विवाह की चिंता हो गई थी।

पर बाबू अनन्तराम कुछ लापरवाह से थे। विवाह का ध्यान आते ही वे सोचते, एक ही तो लड़की है, वह भी चली जाएगी, तो घर तो जंगल हो जाएगा; जितने दिन विवाह टले उतने ही दिन अच्छा है। इसी से वह कुछ बेफिकर से रहते । इसके अतिरिक्त उन्हें विमला के योग्य कोई वर भी न मिलता था। वर अच्छा मिलता तो घर मन का न होता और घर अच्छा मिलता, तो वर में कोई-न-कोई बात ऐसी रहती जिससे वह विवाह करने में कुछ हिचकते थे।

उनके मकान के कुछ ही दूर पर गंगा अपनी निर्मल धारा में तेजी से बहा करती थीं। प्रायः वहाँ के सब लोग रोज गंगा में ही स्नान करते थे। विमला भी अपनी माँ के साथ रोज गंगा नहाने जाती थी। एक दिन प्रातःकाल दोनों माँ-बेटी नहाने गई थीं। अचानक विमला का पैर फिसला; और वह बह चली। माँ-पुत्री को बचाने के लिए आगे बढ़ी, किंतु बचाना तो दूर, वह स्वयं भी बहने लगी। घाट पर किसी व्यक्ति की नजर उन पर नहीं पड़ी, इसलिए दोनों माँ-बेटी बहती हुई पुल के नजदीक पहुँच गईं।

पुल के ऊपर से कुछ कॉलेज के विद्यार्थी घूमने निकले थे। एक की नजर इन असहाय स्त्रियों पर पड़ी । वह फौरन कूद पड़ा। बहुत अच्छा तैराक होने के कारण अपने ही बाहुबल पर, वह दोनों माँ-बेटी को बाहर निकाल लाया। उसकी सहायता के लिए दूसरे विद्यार्थी भी घाट पर आ गए थे। कोई डॉक्टर के लिए दौड़ा, और कोई मोटर के लिए। कुछ देर में माँ तो होश में आ गई पर विमला स्वस्थ न हुई।

इसी बीच अनन्तराम जी के पास भी खबर पहुँची, वे भी दौड़ते हुए आए। कमला और विमला अभी तक नहाकर वापिस न गई थीं। उन्हें रह-रहकर आशंका हो रही थी कि कहीं वे ही न हों। घाट पर पहुँचकर देखा तो आशंका सत्य निकली। मोटर पर कमला और विमला को बैठाकर वे घर आए। वे अपने उपकारी, उस विधार्थी को भी न भूले जिसने उनकी स्त्री और कन्या को डूबने से बचाया था। अनन्तराम जी के आग्रह से विनोद को भी उनके घर तक आना पड़ा।

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